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मेरी अधूरी मोहब्बत पे बड़ा गुमान है मुझको कहते है मुकम्मल होके अक्सर मोहब्बत मर जाती हैं

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मेरे दिल को छू कर वो मेरी रूह में ठहर जाती हैं मैं थाम के जो पूछू वो पल भर में मुकर जाती हैं। मैं सारी रात बैठा रहा उसके ही ख्यालों में  बस उसके ही ख्यालों में मेरी रात गुजर जाती हैं हुआ असर है आंखो पे तुम्हे केसे बयां करू  देखू मैं जन्हा जन्हा बस तू ही नजर आती है केसे भी करके सांसों को में संभाल लेता हूं तू फिर भी आखों के रास्ते मेरे दिल मे उतर जाती हैं मैं बेनाम शायर मैं लिखता हु कहा लिखना आता है मुझे  जो सबके दिल को है छूती वो लफ्ज़ बनके मेरी गजलो में बिखर जाती हैं मेरी अधूरी मोहब्बत पे बड़ा गुमान है मुझको  कहते है मुकम्मल होके अक्सर मोहब्बत मर जाती हैं देख लो आके तुम भी मेरी बिखरी सी दुनिया मे  सुना है यन्हा आके बिगड़ी मोहब्बत सुधर जाती हैं ❤️❤️❤️❤️ ✍️सोनल सिंह राजपूत 

अफसोस ये ख्वाब था मगर हसीन कितना था|

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तुमको था मुझपे हां यकीन कितना था  अफसोस ये ख्वाब था मगर हसीन कितना था  काश के उस रात की सुबह हुई न होती सुबह का मौसम खिला था मगर गमगीन कितना था अफसोस ये ख्वाब था मगर हसीन कितना था हर बात पे हामी भरनी ये कब तय हुआ था  हर बात पे आंह भरना ये कब तय हुआ था  तय तो हुआ था एक दूसरे का ख्याल रखेंगे मामला मोहब्बत का है माना मगर संगीन कितना था  अफसोस ये ख्वाब था मगर हसीन कितना था तुम ना मिलते तो क्या में चल नही पाता  अपने हालात ए जिंदगी क्या में बदल नही पाता तुमसे मिलकर लगा रंग मेरा फीका फीका सा है थोड़ा तन्हा सा था मैं मगर रंगीन कितना था अफसोस ये ख्वाब था मगर हसीन कितना था ✍️सोनल सिंह राजपूत 

आखिर चाहता क्या हूँ मैं??

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तुम पूछते हो ना,,आखिर?? चाहता क्या हूँ, मैं   कभी कभी सोचता हूं बता ही दूँ, क्या चाहता हूं मैं... सच बताऊ ? मैं ना....  तुम्हारे गले लगकर रोना चाहता हूं... "रोना" इतना कि... तुम घबरा जाओ समझ ही ना पाओ... मेरी बेहिसाब सिसकियाँ..... मैं चाहता हूँ,, रोना इतना कि प्रलय ही आ जाए जिसमे सब ख़तम हो जाये मैं और मेरे जैसे सब.... मैं चाहता हूँ रोना इतना कि फिर कभी धरती ना तड़पे प्यास से .... मैं चाहता हूँ रोना इतना की मेरा हर आंसू सीने से होकर तुम्हारे दिल में रिस जाए तब शायद तुम समझ पाओगे मेरी पीड़ा ..😢 अंतहीन पीड़ा....💔 ✍️सोनल सिंह राजपूत 

साँसें उधार ले के गुज़ारी है ज़िंदगी हैरान वो भी थी कि मैं मर क्यों नहीं गया

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आँखों से प्यार का मंज़र नहीं गया  हालाँकि बरसों से मैं उस घर नहीं गया  उस ने मज़ाक़ में कहा मैं रूठ जाऊँगी  लेकिन मेरे वजूद से ये डर नहीं गया  साँसें उधार ले के गुज़ारी है ज़िंदगी  हैरान वो भी थी कि मैं मर क्यों नहीं गया  मिला लाख तसल्ली के बावजूद  आँखों से उस की दुख का समुंदर नहीं गया  उसके घर की सीढ़ियों ने सदाएँ तो दीं मगर  मैं ख़्वाब में रहा कभी ऊपर नहीं गया  बच्चों के साथ आज उसे देखा तो दुख हुआ  उन में से कोई एक भी माँ पर नहीं गया  पैरों में नक़्श एक ही दहलीज़ थी  उस के सिवा मैं किसी और दर नहीं गया  #इश्क #प्यार #मोहब्बत #शेर #शायरी #गजल ✍️सोनल सिंह राजपूत 

क्या ये ही जिन्दगी है ?

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जितनी बार पढ़ो उतनी बार "जिंदगी" का  "सबक" दे जाती है ये कहानी .... जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज ।  ये नहीं वो, दूर नहीं पास ।  ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई। फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल।  2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी। और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए। और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार । समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला। इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला। बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जि

कितना अजीब है न ! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।

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कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था, कि रुख्मिनी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं।  सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण। कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले। रुख्मिनी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन। कितनी अद्भुत लीला है, राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुख्मिनी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुख्मिनी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं। आप से तुम तक की इस या

आत्महत्या क्यों ??

*एक शिष्य ने #ओशो से कहा की वह जिंदगी से तंग आ कर #आत्महत्या करना चाहता है,*  इस पर ओशो बोले तुम सूइसाइड क्यों करना चाहते हो? शायद तुम जैसा चाहते थे, #लाइफ वैसी नहीं चल रही है? लेकिन तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका, अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो? हो सकता है कि तुम्हारी इच्छाएं पूरी न हुई हों? तो खुद को क्यों खत्म करते हो, अपनी इच्छाओं को खत्म करो। हो सकता है तुम्हारी उम्मीदें पूरी न हुई हों और तुम परेशान महसूस कर रहे हो। जब इंसान परेशानी में होता है तो वह सब कुछ बर्बाद करना चाहता है। ऐसे में सिर्फ दो संभावनाएं होती हैं, या तो किसी और को मारो या खुद को। किसी और को मारना खतरनाक है और कानून का डर भी है। इसलिए, लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं। लेकिन यह भी तो एक मर्डर है।तो क्यों न ज़िन्दगी को खत्म करने के बजाए उसे बदल दें। संन्यास ले लो फिर तुम्हें आत्महत्या करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि संन्यास लेने से बढ़कर कोई आत्महत्या नहीं है और किसी को आत्महत्या क्यों करनी चाहिए? मौत तो खुद-ब-खुद आ रही है, तुम इतनी जल्दी में क्यों हो? मौत आएगी, वह हमेशा आती है। तुम्हारे न चाहते हुए भी वह आती

गहराई से सोचो ! आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ??

 अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं जो वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई , वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई ,  जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने जब देखा कि अनीता एक नियत समय से ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है ,  एंड्रिया पल भर के लिए सब कुछ भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता चल रही है , एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया चलती प्रतियोगिता के बीच में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी ,  वहाँ मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी ,  एंड्रिया ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में पानी के अंदर बेहोश पड़ी है ,  ऐसी हालत में ना हाथ पैर चला सकती ना मदद माँग सकती ,  एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला मौजूद हज़ारों लोग सन्न रह गए , एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया ,  लेकिन हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा सवाल छोड़ गई !  इस दुनियाँ में ना जाने कितने लोग हम सबकी ज़िंदगी से जुड़े हैं कितनों से रोज़ मिलते भी होंगे ,  जो इंसान हर किसी से अपने मन की बात नहीं कह